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Saturday, October 10, 2015

सूर्यास्त



अक्सर खौफ सा होता है मुझे
जब देखती हूँ सूर्यास्त को...
बालकनी में खड़े होकर
धीरे धीरे नीचे झुकते सूरज को
देखती हूँ..और महसूस करती हूँ
अपने वजूद को खोने का...
ये खौफ उम्र के साथ बढ्ने लगा है

सूरज के उगने और डूबने का
सिलसिला चलता रहेगा...
और उसके साथ हीं फैलती रहेंगी
असंख्य रश्मियां..मगर कभी ऐसा भी हो
कि ये 'रश्मि' कहीं सदा के लिये खो जाए
और उसका वजूद किन्हीं अँधेरों में
मिल जाए...पर मेरे दोस्तों
एक 'रश्मि' के मिट जाने से
जहां में अंधेरा नहीं होता...
प्रकृति अपनी नियति के साथ
चलती रही है...चलती रहेगी...!!!

शोग-ए-हिज्र

उनका जिक्र...उनकी तमन्ना...उनकी यादें...
क्या क्या नही है मेरे दामन में आजकल...

जल रहें हैं दिल में उनकी यादों के दीये...
रौशन है मेरी अशकों से भरी आँखें भी आजकल...

गम का हर लम्हा शामिल है जिंदगी में...
फिर भी दिल है की मचलता है बहुत आजकल...

हम हैं और उनकी यादें हैं मेरी तन्हाई है...
जीने को और क्या चाहिए इस बेनूर जिंदगी में आजकल...

चाँदनी भी है उदास और खोई खोई सी...
चाँद भी है शोग-ए-हिज्र आजकल...

क्या तमाशा है खुशी के लम्हों में मुसकुराते नही...
और 'रश्मि' कहती फिरती है कि हम खुश हैं बहुत आजकल...!!!