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Sunday, August 2, 2015

छोड़ आए थे हम...



छोड़ आए थे हम उन लम्हों को...
उन यादों को...उन कसमों को...
जो सावन की घटा से कदम से कदम 
मिलाते हुए...बारिश की बौछारों को

अपना साक्षी मानकर हमदोनों नें ली थी
पर आज भी मेरे हाथों पर
तेरे हाथों का लम्स बाकी है...
निगाहों में अब तक तुम्हारे ख्वाब पलते हैं
पर क्या करें... छोड़ आए थे हम उन लम्हों को...
वो एक पल ज़िंदगी के सभी पलों पर भारी है
उस दिन तुम्हारा इंतज़ार सिर्फ मुझे हीं नहीं
बल्कि हर एक फूल को था...
फिंजा को भी तुम्हारी खुशबू की तमन्ना थी
पर तुम नहीं आए थे...वहीं कहीं...
छोड़ आए थे हम उन लम्हों को...
पर आज जब तुम्हें देखा...
तो दिल नें तड़प कर कहा
क्यूँ... छोड़ आए थे हम उन लम्हों को...???
सर्वाधिकार सुरक्षित- रश्मि अभय


Saturday, August 1, 2015

सावन....



ना कोई खोज ना खबर...
ज़िंदगी जैसे गुमशुदा हुई जाती है
हालात तो यूं भी उल्टी राह पर थी...
मगर अब सभी खफ़ा हुए जाते हैं।
ना जाने कैसी ये घड़ी आई है...
अपने भी बेगाने बने हैं...
नेकी भी बनी रुसवाई है...
जो थे दोस्त जिगर के टुकड़े...
वो भी दुश्मन बन गए हैं...

हर तरफ अंधेरा है...
हर तरफ एक खाई है...
सावन की झड़ी भी अब
बेगानी सी लगती है
ज़्युन मेरी हालात पर
गम की घटा छाई है
मौसम नें यूं करवट बदली...
जैसे सावन में सूखा आ गया...
अब ना कोई झूला डाले...
ना हीं कोयल गायी है।

सर्वाधिकार सुरक्षित--- रश्मि अभय
आप इसे मेरे ब्लॉग www.muk-abhivyakti.blogspot पर पढ़ सकते हैं।