वो शख़्स...
जिससे कभी मेरी तनहाई
बदनाम ना हुई...
ना जिसने कभी
मेरे अकेलेपन का
कोई अतिक्रमण किया
वो शख़्स...
जो मेरे साथ होकर भी नहीं है
जिसने मेरे इर्द गिर्द बुनी हुई
मेरी सीमाओं को इज्जत बख़्शी
जो मेरे उतना हीं करीब आता है
जितना मैं बुलाती हूँ...
जिसने मुझको मेरे अंदर
जीने की इजाज़त दी
वो शख़्स...मेरी रूह से होकर
मेरे रगों में...
लहू बन कर बहता है...!!!
जिससे कभी मेरी तनहाई
बदनाम ना हुई...
ना जिसने कभी
मेरे अकेलेपन का
कोई अतिक्रमण किया
वो शख़्स...
जो मेरे साथ होकर भी नहीं है
जिसने मेरे इर्द गिर्द बुनी हुई
मेरी सीमाओं को इज्जत बख़्शी
जो मेरे उतना हीं करीब आता है
जितना मैं बुलाती हूँ...
जिसने मुझको मेरे अंदर
जीने की इजाज़त दी
वो शख़्स...मेरी रूह से होकर
मेरे रगों में...
लहू बन कर बहता है...!!!
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