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Saturday, July 26, 2014

यहाँ से शुरू होगा...प्रकाश का एक सफर।।।



ज़िंदगी के घुमावदार घेरों में
कोई लगातार लगाता है चक्कर
बार बार सुनाई देती है
उसके कदमों की आवाज़ 
मगर कोई दिखाई नहीं देता
कोई भी दिखाई नहीं देता
जैसे किसी तिलिस्म की गिरफ्त में

अपने हीं वजूद को ढूंढ रहा हो कोई
दीवारों को भेंद कर आती हुई ध्वनि
एक रहस्यमय वजूद का निर्माण करती है
जैसे कोई पूछ रहा हो मुझसे
अपनी खोई हुई पहचान....
मेरा हृदय धडक उठता है इक आशंका से
कौन है जो सुनाई तो देता है...
मगर कभी दिखाई नहीं देता
तभी सुनायी देती है कुछ गिरने की आवाज़
दीवार से उखड़ गया है उसका पलस्तर
झड़ रही हैं चूने की पपड़ियाँ
और वहाँ जो आकृति उभर कर आती है
वो हूबहू मेरे शक्ल जैसी है...
क्षण बगर को हतप्रभ रह जाती हूँ मैं
उफ़्फ़...तो क्या ये मैं हूँ...
जिसको अपनी तलाश है ???
वक़्त के घुमावदार घेरे में
घूमता हुआ मेरा वजूद...
अपने होने का एहसास मांगता है
बार बार पुकारता है मुझे 'रश्मि'
मुक्त करो मुझे इन अँधेरों से
हाँ शायद...यही सत्य है...
पता ही नहीं चला कि कब
वक़्त के अँधेरों नें मेरे वजूद को निगल लिया
अब इसे मुक्त करना हीं होगा...
और यहाँ से शुरू होगा...प्रकाश का एक सफर।।।

'रश्मि अभय' (२७ जून २०१४)