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Friday, July 19, 2013

````मैं कहाँ हूँ````

तुम्हीं बताओ
तुम्हारी ज़िंदगी में
मैं कहाँ हूँ...
सुबह की ताजगी में
या ढलती शाम में
बारिश की पहली फुहार में
या चाँद की चाँदनी में
या कि फिर तपती धूप में
या रात के गहन अँधेरों में
तुम्हारी गहरी चिंतन में
या सरसराती सोच में

तुम्हीं बताओ
तुम्हारी ज़िंदगी में
मैं कहाँ हूँ

ज़िंदगी के हुजूम से घबड़ा कर
साहिल के किसी किनारे पर
तुम्हारी उँगलियों में दबी
सिगरेट के धुएँ के छल्लों में
या बेइरादा उभर आई किसी सोच में
इक दर्द मोहब्बत टूटने का
या दूसरा आगाज होने का
किसी खुश आदाब लम्हों में

तुम्हीं बताओ
तुम्हारी ज़िंदगी में
मैं कहाँ हूँ....

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