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Friday, June 21, 2013

गुज़रा हुआ मौसम



गुजरे हाए मौसम के किसी पल में

तुमने कुछ इस तरह पुकारा था मुझे

जैसे कोई बहुत मीठा सुर...

मेरी रूह का कोई सिरा छू जाए

जसे शबनम का कोई अकेला मोती

मेरी हिना लगी हथेलियों पर टपक जाए

जैसे कोई आवारा हवा मोहब्बत की सूरत में

रात की रानी से हौले से कोई बात कह जाए

जैसे मेरी बचपन की किसी सहेली ने मुझे

तेरा नाम लेकर शोख लहजे में कोई बात कही हो

शर्म से पलकें बोझिल हो उठी...

एक ऐसा सुरूर दिलों-दिमाग पर छ गया

कि खुद-बख़ुद मेरी आँखें बंद हुई जाती हैं

देर तक ख्वाब का आलम हीं रहा...

तेरी आवाज़ कि सरसराहट में बंधी मेरी रूह

अनदेखे बंधनों में सफर करती रही...

ना जाने कितनी बार...कभी सिमटी...

कभी बिखरी और कभी अपने होश गवा बैठी

तुम्हारे साथ ख्वाबों में जमीं से आसमां तक घूमती रही

क्वाब ठा जो टूटने का नाम नहीं लेता

मगर ख्वाब तो ख्वाब हीं होते हैं...

आज किसी ने बड़े दर्द के साथ कहा....

बावरी तुम किस दुनियाँ में गुम हो...???

तुम्हारा महबूब आज उसी लहजे उसी अंदाज के साथ

किसी और का नाम ले रहा था....


 रश्मि अभय (२७ मई २०१३,९:४० पी एम)

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