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Monday, January 7, 2013

लाजवंती


एक तेज़ हवा का झोंका,
और तुम्हारे होने का एहसास,
यूं जैसे हौले से,
छु गए हो तुम मुझे,
तुम्हारे होने के गुमाँ से हीं,
मैं अपने आप में सिमट गई हूँ,
मानो जैसे किसी ने,
लाजवंती के पौधे को,
धीरे से छु लिया हो,
तुम्हारे स्पर्श का एहसास,
मदहोश कर गया है मुझे,
बोझिल हो गई हैं पलकें मेरी,
और लरज़ उठे हैं होंठ मेरे,
जबकि मुझे भी ये पता है,
कि तुम यहाँ नहीं हो,
फिर भी तुम्हारी यादों की दुनियाँ में,
मैं खुद को ढूंढ लेती हूँ,
और जी लेती हूँ हर उस पल को,
जो मुझे मिला नहीं....!!!
          रश्मि अभय
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