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Sunday, December 30, 2012

परिंदे

कितना सुकून है इन परिंदों के साथ
जी करता है उम्र गुज़र जाए
इनके पंखों के साये में
मैं इनसे अपने दिल की 
हर बात करती हूँ
और ये मेरे प्यारे दोस्त
बहुत हीं धैर्य के साथ
मेरी बातें सुनते हैं
मैं अकेली कहाँ हूँ इस जहां में
ये मेरे संगी साथी हैं
जब भी ये खुश होते हैं
पंखों को खोल कर
आसमान की बुलंदियों को छु आते हैं
और फिर लौट कर
मेरे कंधों पर बैठ मेरे कानों में
सरगोशी करते हैं...'रश्मि'
उड़ान पंखों से नहीं
हौसलों से होती है
तुम बस पहल करो
कारवां बनता जाएगा 

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