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Sunday, November 18, 2012

वट वृक्ष

तुम बेशक चले जाओ...
मैं यहीं रहूँगी...
उस वट वृक्ष की तरह...
जो तुम्हारे लौटने पर...
और कुछ ना सही...


मगर तुम्हारे थके हुए जिस्म को...
साया तो दे हीं सकता है...
मैं जानती हूँ...
तुम जरूर लौटोगे...
जब थक जाओगे ज़िंदगी से...
तब मैं तुम्हें अपने साये से लिपटा कर...
तुम्हारे जिस्म की सारी जलन को...
अपने दामन में समेट लूँगी...
और सौंप दूँगी तुम्हें...
अपने वजूद की सारी शीतलता...
हमेशा की तरह..
क्यूंकि अस्थिरता पुरुष की आदत है....
और सहनशीलता औरत की ताक़त........रश्मि अभय