कभी खुदा से कुछ नही मांगा मैंने
,
एक तेरी मोहब्बत के सिवा,
तुम थे तो सबकुछ था,
दामन भरा पड़ा था मेरी खुशियों से,
आज भी भरा पड़ा है दामन मेरा,
मगर खुशियाँ कहीं फिसल सी गई हैं,
कुछ बिखरे लमहें...एक दरकता रिश्ता...
और कुछ सिसकते एहसास,
बहुत कुछ है मेरी साँसों में...
जो कभी तुम्हारी साँसों से जुड़ी पड़ी थी,
बस एक छोटी सी शिकायत की थी मैंने,
अपना 'स्व' देकर तुम्हें मांगा था,
मगर शायद बंट जाना पुरुष की फितरत है,
और मुझे बंटे रिश्ते स्वीकार नहीं,
इसलिए चल दिये तुम मुझे छोड़ कर,
जाते जाते याद ना करने की नसीहत दे गए थे,
'मन' काश तुम मुझे भूल जाने की तरकीब भी बताते जाते.....!!!
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